maa aur us ka snasar

दुनिया का आधा इन्सान दुसरॊ  के घर में घुस हुआ है.....
पता नहीं कहा कहा पड़ा हुआ है
न उसे आपना पता है,
न जहा वो घुसा हुआ है.
पर वाही इन्सान समझता है अपने आप को…कबिल .
और कर रहा  नाकबिल हमारे समाज को।
घरो को ...
इन्सान को ...
एक दूसरे के....
समाज को…
बहुत बिगाड़ता जा रहा है, हमारा समाज ...परिवार ...और हमारा समय !
बहुत ख़राब हो चूका है हमारा घर और समाज.!
माँ और उस का संस्कार पता नहीं कहा चला गया ,
लगता है. माँ कमज़ोर हो गए है…
माँ ही है। जननी है. संस्कार है. ...समाज है… माँ ही सब कुछ है।
माँ बचा लो। अपने समाज को…
 <3 माँ <3
(ये मेरे अपने विचार है, आज के यूथ और यूथ के बाद के 5 -6  साल  को देखते हुए)
(these r my own thoughts)

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